Thursday, February 17, 2011

छः

धधक रही जिस उर में ज्वाला
उसको खूब धधकने दो।
परिवर्तन की बात जो करता
उसको मन भर बकने दो॥
टकराते हैं हम नित प्याला
मदिरा खूब छलकने दो।
राजनीति की बात है भाई
रुको, रोटियाँ सिंकने दो॥