Thursday, February 17, 2011

छः

धधक रही जिस उर में ज्वाला
उसको खूब धधकने दो।
परिवर्तन की बात जो करता
उसको मन भर बकने दो॥
टकराते हैं हम नित प्याला
मदिरा खूब छलकने दो।
राजनीति की बात है भाई
रुको, रोटियाँ सिंकने दो॥

4 comments:

  1. राजनीति की बात है भाई
    रुको, रोटियाँ सिंकने दो॥

    वर्तमान सन्दर्भ में आपकी कविता सटीक है

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  2. राजनीति पर करारा व्यंग्य


    चुटकियाँ नहीं
    ये खिड़कियाँ लगती हैं
    जिनसे सबकी पोल खुलती है
    भ्रष्ट नेताओं की.........

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  3. राजनीति की बात है भाई
    रुको, रोटियाँ सिंकने दो॥

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  4. बंधुवर मुकेश जी
    सस्नेहाभिवादन !

    आपकी ताज़ा पोस्ट खुलते हुए बहुत लोड ले रही है …

    प्रस्तुत कविता लय ताल में है … बधाई !
    राजनीति की बात है भाई


    अगली विजिट में आपकी बाकी पोस्ट भी देखूंगा …

    प्रणय दिवस सप्ताह भर पहले था तो क्या हुआ … बसंत ॠतु तो अभी बहुत शेष है ।
    मंगलकामना का अवसर क्यों चूकें ?
    प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं !

    ♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है !♥
    बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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